हिन्दी साहित्य के आदिकाल के नामकरण के संबंध में विविध दृष्टिकोण हैं क्योंकि नामकरण की प्रक्रिया सामान्यत: प्रवृत्ति के आधार पर ही निर्धारित की जाती है. इस संदर्भ में आचार्य रामचंद्र शुक्ल, रामकुमार वर्मा, राहुल सांकृत्यायन तथा हजारीप्रसाद द्विवेदी के विचार उल्लेखनीय हैं.
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इस आदिकाल को 'वीरगाथा काल' नाम दिया. उन्होंने निम्नलिखित 12 रचनाओं को आधार मानकर इस काल का नामकरण किया:
1. विजयपाल रासो
2. हम्मीर रासो
3. कीर्तिलता
4. कीर्तिपताका
5. खुमान रासो
6. बीसलदेव रासो
7. पृथ्वीराज रासो
8. जयचंद प्रकाश
9. जयमयंक जसचंद्रिका
10. परमाल रासो
11. खुसरो की पहेलियाँ
12. विद्यापति की पदावली
इस संबंध में उन्होंने हिन्दी साहित्य के इतिहास में लिखा है:
इन्हीं बारह पुस्तकों की दृष्टि से आदिकाल का लक्षण-निरूपण और नामकरण हो सकता है. इनमें से तीन विद्यापति-पदावली, खुसरो की पहेलियाँ और बीसलदेव रासो को छोड़कर शेष सब ग्रंथ वीरगाथात्मक है. अत: आदिकाल का नाम वीरगाथाकाल ही रखा जा सकता है.शुक्लजी द्वारा गिनाई गई इन रचनाओं में से अधिकांश अप्रमाणिक एवं नोटिस मात्र हैं. इस प्रकार शुक्लजी द्वारा जिन ग्रंथों के आधार पर आदिकाल का नामकरण वीरगाथा काल किया गया, वह आधार अनुपयुक्त प्रतीत होता है. इसके अतिरिक्त शुक्लजी ने तत्कालीन धार्मिक साहित्य को उपदेश प्रधान मानकर उसे साहित्य की कोटि में नहीं रखा. इन्हीं कारणों से वीरगाथा काल अब मान्य नहीं रहा.
रामकुमार वर्मा ने आदिकाल की कालावधि संवत् 750 से 1375 तक मानकर इस दो खण्डों में बाँटा है.
1. संधिकाल-750 से 1000 वि. तक,
2. चारणकाल-1000 से 1375 वि. तक.
संधिकाल में जैन, सिद्ध तथा नाथ साहित्य को तथा चारणकाल में वीरगाथात्मक रचनाओं को समाविष्ट किया है. संधिकाल दो भाषाओं एवं दो धर्मों का संधियुग है, जो वस्तुत: अपभ्रंश साहित्य ही है. चारणकाल नाम वीरगाथा काल की भाँति ही सदोष है. क्योंकि इस रूप में भीतर गिनाई गई चारणों की रचनाएँ अप्रामाणिक एवं परवर्ती हैं. कुछ आलोचकों का यह कहना है कि वीरगाथा काव्यों में रचयिता चारण न होकर भाट थे. इसके साथ ही चारणकाल नाम से उस युग के काव्य की भावनाओं या शैली संबंधी विशेषताओं का भी संकेत नहीं मिलता. रामकुमार वर्मा द्वारा दिए गए नाम को भी साहित्य जगत में स्वीकृति नहीं मिली.
राहुल सांकृत्यायन ने अपभ्रंश तथा हिन्दी के इस युग को 'सिद्ध-सामंत-युग' कहा है. प्रस्तुत नामकरण बहुत दूर तक तत्कालीन साहित्यिक प्रवृत्ति को स्पष्ट करता है. इस काल में सिद्धों के साहित्य की प्रधानता है तथा सामंत शब्द चारण कवियों की एक स्तुतिपरक रचनाओं के प्रेरणा-स्रोत की ओर संकेत करता है. यह नाम भी अधिक प्रचलित नहीं हो सका. साथ ही इस नाम से जैन साहित्य तथा लौकिक साहित्य का बोध नहीं होता है. राहुल भी अपभ्रंश तथा पुरानी हिन्दी को एक ही मानते हैं और साथ ही युग की रचनाओं को मराठी, उड़िया, बंगला आदि की नीति भी स्वीकारते हैं. इस प्रकार सिद्ध सामंत युग नाम भी तत्कालीन साहित्य की प्रवृत्तियों को स्पष्ट करने में समर्थ नहीं है.
आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने हिन्दी साहित्य के इस प्रारंभिक काल को 'आदिकाल' कहना ही उपयुक्त समझा है. उनका यह नामकरण भी दोषरहित नहीं है. इस नाम से यह लगता है कि काल स्वतंत्र रूप से विकसित होने वाले, पूर्ववर्ती परम्पराओं और काव्य रूढ़ियों से मुक्त एक सर्वथा नवीन साहित्य काल है. किन्तु पूर्ववर्ती अपभ्रंश साहित्य से प्रभावित होने के कारण हम हिन्दी के प्रारंभिक साहित्य को पूर्णतया स्वतंत्र तथा नूतन साहित्य नहीं कह सकते. साहित्य की दृष्टि से यह अपभ्रंश काल का ही विकसित रूप है. साहित्य के किसी काल का नामकरण इस काल की प्रमुख प्रवृत्तियों तथा प्रतिपाद्य विषय के आधार पर अधिक वैज्ञानिक और प्रामाणिक माना जाता है. द्विवेदी जी का आदिकाल नामकरण तत्कालीन साहित्य प्रवृत्ति की ओर आकृष्ट करने में असमर्थ है, परन्तु हिन्दी साहित्य का प्रारंभिक युग होने का सूचक यह नाम आदिकाल पर्याप्त प्रचलित हो चुका है. इसलिए अब प्राय: इस युग को आदिकाल नाम से ही संबोधित किया जाता है.
12 comments:
JAANKAARI DENE K LIYE AABHAR
Dhannevaad ☺☺☺😊😊apka
Thanku so much
Thanks
For your information
Sahi hai isse knowledge badage
Thanks google
धन्यवाद, जानकारी हेतु।
Phle hindi likhne k rules sikh lijiye
In hindi after ending tha sentence [|] this mark is
Used not a dot .Dot is used in english language for ending the sentence
Bhout khub 😂😂
thank you for information google
बुरे वक्त पर साथ देने के लिए धन्यवाद गूगल।।
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